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स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से सशक्त हो रही हैं पर्वतीय महिलाएं

By नरेंद्र सिंह बिष्ट | 16,April,2024 (Updated: 16,April,2024)
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स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से सशक्त हो रही हैं पर्वतीय महिलाएं

वर्तमान समय में महिलाओं को समाज की रीढ़ माना जाता है, लेकिन आज भी उन्हें वह स्थान और सम्मान नहीं मिल पाया है, जिसकी वे वास्तविक रूप से हकदार हैं। विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी पुरुष प्रधानता स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। 90 प्रतिशत से अधिक मामलों में महिला पदों का कार्य उनके पतियों द्वारा किया जाता है, और महिलाएं केवल घरेलू कार्यों तक सीमित रह जाती हैं।

हालांकि अब समय बदल रहा है।

अब महिलाएं अपने अस्तित्व के लिए आगे आ रही हैं और आजीविका कौशल के माध्यम से अपने आत्मविश्वास और प्रतिभा को समाज के सामने मिशाल के रूप में प्रस्तुत कर रही हैं। इस परिवर्तन में स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

स्वयं सहायता समूह क्या होते हैं?

स्वयं सहायता समूह 10-20 सदस्यों के छोटे, अनौपचारिक समूह होते हैं जो सामूहिक बचत, आय-वर्धक गतिविधियों और पारस्परिक सहयोग के माध्यम से गरीबी उन्मूलन और वित्तीय सशक्तिकरण की दिशा में कार्य करते हैं। ये समूह आत्मनिर्भरता, सामुदायिकता और निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ावा देते हैं।

स्वयं सहायता समूहों के मुख्य उद्देश्य:

  • गरीबी उन्मूलन

  • वित्तीय सशक्तिकरण

  • सामाजिक एवं आर्थिक विकास

  • महिला सशक्तिकरण

पर्वतीय महिलाओं की सफलता की कहानियाँ

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में महिलाएं छोटे-छोटे समूह बनाकर बचत कर रही हैं और आत्मनिर्भर बन रही हैं। इससे उन्हें न सिर्फ आर्थिक मजबूती मिली है, बल्कि समाज में भी उनका सम्मान बढ़ा है।

सिमायल गांव की कमला भट्ट, जो लक्ष्मी आजीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं, बताती हैं कि वर्ष 2021 में 16 महिलाओं ने मिलकर यह समूह बनाया था, जिसकी अब तक की कुल बचत ₹60,000 हो चुकी है। आज यह समूह इतना सक्षम हो चुका है कि गांव में किसी भी योजना के संचालन से पूर्व इनसे सलाह ली जाती है – यह नारी सशक्तिकरण की एक बड़ी उपलब्धि है।

सहकारिता की भूमिका

इन उत्पादों को राज्य, देश और विदेशों में पहचान दिलाने में कुछ सहकारिताओं का अहम योगदान है। विशेष रूप से प्यूड़ा, नैनीताल की धरा स्वायत्त सहकारिता, जिसे संजय सिंह बिष्ट संचालित करते हैं, महिलाओं द्वारा बनाए गए उत्पादों को लेबलिंग, पैकेजिंग, गुणवत्ता परीक्षण और मार्केटिंग के जरिए बाजार तक पहुंचाती है। यहाँ के उत्पाद जैसे पिसी लूण (पहाड़ी नमक), जूस, मसाले, दाल, चाय, साबुन और तेल की बहुत अधिक मांग है।

पुरुषों की भागीदारी और भविष्य

महिला सशक्तिकरण की इस प्रेरणादायक यात्रा से प्रेरित होकर पुरुष समूह भी सक्रिय हो रहे हैं। सतोली की आरोही संस्था द्वारा संचालित सामुदायिक आजीविका परियोजना के अंतर्गत धारी ब्लॉक के जलना नीलपहाड़ी में गठित आदर्श स्वयं सहायता समूह इसका उदाहरण है। इस समूह की आंतरिक बचत ₹1.20 लाख है और यह कृषि उपकरणों के लिए आंतरिक ऋण सुविधा भी दे रहा है। आपसी सहयोग से ये सदस्य सफलतापूर्वक कृषि कार्य कर रहे हैं।

Conclusion

स्वयं सहायता समूह अब पर्वतीय क्षेत्रों में सशक्तिकरण का मजबूत स्तंभ बन चुके हैं और भविष्य में यह आत्मनिर्भरता की दिशा में और भी अहम भूमिका निभाएंगे।

नरेंद्र सिंह बिष्ट
नरेंद्र सिंह बिष्ट

रिपोर्टर, हल्द्वानी, नैनीताल (उत्तराखंड)

नरेन्द्र सिंह बिष्ट उत्तराखंड के सामाजिक, पर्यावरणीय और ग्रामीण विकास से जुड़े विषयों पर लेखन और रिपोर्टिंग करते हैं।

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