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“कीवी मैन” भवान सिंह कोरंगा की कहानी: उत्तराखण्ड में कीवी क्रांति की मिसाल

By नरेन्द्र सिंह बिष्ट | 14,Feb,2024 (Updated: 14,Feb,2024)
कृषि
कीवी खेती
उत्तराखण्ड
किसान प्रेरणा
सफलता की कहानी
“कीवी मैन” भवान सिंह कोरंगा की कहानी: उत्तराखण्ड में कीवी क्रांति की मिसाल

जानिए कैसे उत्तराखण्ड के एक सेवानिवृत्त शिक्षक भवान सिंह कोरंगा ने कीवी की खेती में क्रांति लाकर किसानों के लिए एक नई राह बनाई।

परिचय

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में जहाँ किसान आज भी कई सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों से जूझ रहे हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने न केवल इन चुनौतियों को स्वीकारा, बल्कि उन्हें अवसर में बदलते हुए एक नई राह गढ़ दी।

ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी है उत्तराखण्ड के भवान सिंह कोरंगा की, जिन्हें आज पूरा देश 'कीवी मैन' के नाम से जानता है। उनका सफर सिर्फ एक किसान की सफलता नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन बन चुका है।

बचपन का जुनून बना पहचान: बागवानी से ‘कीवी क्रांति’ तक

भवान सिंह कोरंगा का बचपन बागेश्वर जिले के शांत और सुरम्य शामा गांव में बीता। उनके पिता भी कृषि से जुड़े थे, और घर के आँगन में लगे फलों के पेड़ों ने उनके मन में बागवानी के बीज बो दिए थे। पढ़ाई में उत्कृष्ट होने के बाद उन्होंने शिक्षक बनने का रास्ता चुना, पर खेती का सपना उनके दिल में हमेशा जीवित रहा।

सेवानिवृत्ति के बाद जब अधिकतर लोग आराम करते हैं, कोरंगा जी ने एक नई शुरुआत की। 2008 में उन्होंने कीवी की खेती का प्रयोग करने का निश्चय किया, जबकि आस-पास के लोग इस निर्णय को हैरानी से देख रहे थे। एक विदेशी फल, जिसका नाम भी बहुतों ने नहीं सुना था — उसे उत्तराखण्ड की ठंडी पहाड़ियों में उगाना, एक चुनौती थी।

शुरुआत में सिर्फ 50 पौधों से कीवी का रोपण किया गया। उन पौधों की देखभाल में उन्होंने तकनीकी जानकारी की कमी के बावजूद दिन-रात एक कर दिए। उन्होंने इंटरनेट, कृषि विश्वविद्यालय और कुछ चुनिंदा विशेषज्ञों से मदद ली। धीरे-धीरे पौधों में फल आने लगे, और उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता गया।

आज उनकी जमीन पर 650 से अधिक कीवी पौधे हैं, जिनसे हर साल 150 क्विंटल कीवी का उत्पादन होता है। उनकी मेहनत की मिसाल ये है कि A1 ग्रेड की 70% से अधिक कीवी दिल्ली, देहरादून और हल्द्वानी की बड़ी मंडियों में जाती हैं।

शामा गांव: एक गांव की नई पहचान

कीवी की खेती से भवान सिंह कोरंगा की सफलता न सिर्फ उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि रही, बल्कि इसने पूरे शामा गांव को नई पहचान दी। पहले जहां इस गांव को लोग बमुश्किल जानते थे, वहीं अब यह उत्तराखण्ड के नक्शे पर 'कीवी हब' के रूप में उभर चुका है।

आज गांव के 200 से अधिक किसान कीवी की खेती से जुड़े हुए हैं। इससे न सिर्फ आर्थिक स्थिति में सुधार आया है, बल्कि पलायन जैसी गंभीर समस्या पर भी अंकुश लगा है। युवाओं को अब गांव छोड़ने की बजाय अपने खेतों में भविष्य नजर आता है।

इसके साथ ही गांव में स्थानीय रोजगार भी सृजित हुआ है। 15 से अधिक ग्रामीण महिलाएं कीवी प्रसंस्करण इकाइयों में काम कर रही हैं। ये इकाइयाँ जैम, स्क्वैश और जैली जैसे उत्पाद बनाकर राज्य के अन्य जिलों और यहां तक कि बाहर के राज्यों में भी भेजती हैं।

‘दानपुर एकता किसान स्वायत्त सहकारिता ग्रोथ सेंटर’ की स्थापना इस आंदोलन को और सशक्त बना रही है। यह सेंटर न केवल मार्केटिंग का काम करता है बल्कि किसानों को तकनीकी प्रशिक्षण भी देता है।

कीवी: स्वाद और स्वास्थ्य का अद्भुत मेल

कीवी, जिसे वैज्ञानिक नाम *Actinidia deliciosa* से जाना जाता है, स्वास्थ्य का खजाना मानी जाती है। यह न केवल स्वाद में उत्तम होती है, बल्कि इसके औषधीय गुण भी बेमिसाल हैं।

भारत में कीवी की मांग लगातार बढ़ रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में भारत ने 4,500 करोड़ रुपये की कीवी विदेशों से आयात की। ऐसे में देश में इसका उत्पादन स्थानीय किसानों के लिए बहुत बड़ा अवसर बन चुका है।

भवान सिंह कोरंगा के अनुसार, कीवी का पौधा कम पानी में पनप जाता है और इसमें कीट भी कम लगते हैं, जिससे यह पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी अनुकूल है।

  • इम्यूनिटी को मज़बूत करता है, खासकर सर्दियों में

  • फाइबर की अधिकता से पाचन में सुधार होता है

  • एंटीऑक्सिडेंट्स से भरपूर, जिससे त्वचा और बाल स्वस्थ रहते हैं

  • विटामिन K और पोटैशियम दिल की सेहत में सहायक

  • डायबिटीज और ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए उपयुक्त

नरेन्द्र सिंह बिष्ट की भूमिका: एक प्रेरणा को शब्दों का रूप

एक अच्छी कहानी को दुनिया तक पहुँचाने के लिए सिर्फ एक किरदार नहीं, बल्कि एक द्रष्टा की भी जरूरत होती है। नरेन्द्र सिंह बिष्ट, हल्द्वानी के रहने वाले लेखक, ऐसे ही द्रष्टा हैं जिन्होंने इस पूरी कहानी को समाज के सामने लाने का बीड़ा उठाया।

उनकी लेखनी में सिर्फ तथ्यों की गहराई नहीं, बल्कि संवेदनाओं की ऊष्मा भी है। उन्होंने कई बार शामा गांव जाकर भवान सिंह जी से संवाद किया, खेतों में उनके साथ समय बिताया और उनके संघर्ष को महसूस किया।

नरेन्द्र सिंह की नजर में यह सिर्फ एक किसान की कहानी नहीं थी, बल्कि उत्तराखण्ड की आत्मा से जुड़ी एक आवाज़ थी — जिसे यदि सही मंच मिले, तो लाखों लोगों को प्रेरित कर सकती है।

निष्कर्ष: जब जुनून, ज्ञान और जनसेवा मिल जाए

‘कीवी मैन’ भवान सिंह कोरंगा की यह कहानी हमें बताती है कि परिवर्तन की शुरुआत एक व्यक्ति से भी हो सकती है — बशर्ते उसके पास लक्ष्य को पाने का जूनून और समाज को कुछ लौटाने की भावना हो।

इस कहानी से सीखने को बहुत कुछ है — चाहे वह तकनीकी नवाचार हो, प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर उपयोग, या फिर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास।

और अंततः, नरेन्द्र सिंह बिष्ट जैसे लेखक ही हैं जो ऐसी प्रेरणादायक कहानियों को सामने लाकर समाज के हर कोने तक पहुँचाते हैं। उनकी लेखनी एक पुल बनती है — खेतों और शहरों के बीच, किसान और नीति-निर्माताओं के बीच।

Conclusion

भवान सिंह कोरंगा की यह कहानी इस बात का प्रमाण है कि जुनून, तकनीकी जानकारी और समाज सेवा की भावना के साथ कोई भी किसान बदलाव का वाहक बन सकता है। उत्तराखण्ड में कीवी खेती न केवल एक नई आर्थिक दिशा है, बल्कि यह पहाड़ों के भविष्य के लिए एक नई उम्मीद भी है।

नरेन्द्र सिंह बिष्ट
नरेन्द्र सिंह बिष्ट

कृषि विशेषज्ञ

लेखक का उद्देश्य भारतीय कृषि और किसानों के जीवन से जुड़ी सच्ची और सरल बातें लोगों तक पहुँचाना है। यह लेखन गाँवों की चुनौतियों और मेहनत को सामने लाने की कोशिश करता है, ताकि लोगों को खेती-किसानी की असली स्थिति समझ में आ सके। लेखक चाहते हैं कि इनके माध्यम से किसानों की आवाज़ सुनी जाए और समाज में जागरूकता बढ़े।

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