उत्तराखंड के कृषि विशेषज्ञ विजय प्रताप सिंह द्वारा पहाड़ी किसानों के लिए माइक्रो-इरिगेशन तकनीक की उपयोगिता और इससे होने वाले फायदों की गहराई से जानकारी।
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में खेती एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। मिट्टी की उर्वरता, पानी की उपलब्धता, और बदलते मौसम के कारण किसानों को अपनी आजीविका चलाने में कठिनाई होती है। ऐसे में सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली यानी माइक्रो-इरिगेशन एक क्रांतिकारी समाधान बनकर उभरा है।
माइक्रो-इरिगेशन में ड्रिप और स्प्रिंकलर तकनीकें शामिल होती हैं जो पौधों को आवश्यकता के अनुसार पानी प्रदान करती हैं, जिससे पानी की बचत होती है और फसलों की गुणवत्ता बेहतर होती है।
भीमताल में आयोजित एक विशेष जागरूकता सत्र में पंतनगर विश्वविद्यालय के कृषि विशेषज्ञ विजय प्रताप सिंह ने बताया कि कैसे माइक्रो-इरिगेशन उत्तराखंड की पहाड़ी खेती की दशा और दिशा दोनों बदल सकता है। उन्होंने स्थानीय किसानों को इस तकनीक की विस्तृत जानकारी दी और उदाहरणों के माध्यम से इसके लाभों को समझाया।
उन्होंने कहा, “आज जब पानी की कमी और मौसम की अनिश्चितता किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है, माइक्रो-इरिगेशन एक ऐसा समाधान है जो कम संसाधनों में ज़्यादा उत्पादन संभव बनाता है।”
यह तकनीक विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों के लिए लाभकारी है।
पानी की 50% से अधिक बचत
फसलों की जड़ तक सीधी सिंचाई
मिट्टी का क्षरण कम होता है
फर्टिगेशन की सुविधा (पानी के साथ उर्वरक देना)
श्रम लागत में कमी आती है
पौधों की वृद्धि और गुणवत्ता में सुधार होता है
खरपतवार की समस्या में कमी
ड्रिप सिंचाई में पानी को पाइप और नलियों के माध्यम से पौधों की जड़ों में धीरे-धीरे पहुँचाया जाता है। यह तकनीक विशेष रूप से सब्जियों, फलों, फूलों और औषधीय पौधों के लिए उपयोगी है।
स्प्रिंकलर प्रणाली बारिश की तरह सिंचाई करती है, जिससे बड़े क्षेत्र में समान रूप से नमी पहुँचती है। यह अनाज, दालें और अन्य फसलों के लिए उपयुक्त है।
केंद्र और राज्य सरकारें किसानों को सूक्ष्म सिंचाई अपनाने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान कर रही हैं। PMKSY (प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना) के तहत किसानों को 50% से 80% तक सब्सिडी दी जाती है।
इसके अतिरिक्त कृषि विभाग समय-समय पर प्रशिक्षण सत्र, डेमो मॉडल और तकनीकी सहायता भी उपलब्ध कराता है।
सत्र में ऐसे किसानों के अनुभव भी साझा किए गए जिन्होंने माइक्रो-इरिगेशन को अपनाकर अपनी उपज और मुनाफे में उल्लेखनीय वृद्धि की।
भीमताल के रमेश चंद्र ने ड्रिप सिस्टम लगाकर टमाटर की उपज को दोगुना किया।
नैनीताल की पूजा देवी ने स्प्रिंकलर सिस्टम से फूलों की खेती में 40% अधिक आय प्राप्त की।
अल्मोड़ा के महेश सिंह ने ड्रिप तकनीक से शिमला मिर्च की खेती में कीटनाशकों की खपत 30% तक घटा दी।
माइक्रो-इरिगेशन तकनीक अपनाने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है:
स्थानीय कृषि विभाग या कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें।
फसल और मिट्टी की विशेषताओं के अनुसार प्रणाली चुनें।
सरकारी योजनाओं की पात्रता जांचें और आवेदन करें।
प्रशिक्षण सत्र में भाग लें और अपने क्षेत्र में डेमो मॉडल देखें।
शुरुआत छोटे खेत से करें और अनुभव के अनुसार विस्तार करें।
माइक्रो-इरिगेशन केवल किसानों के लिए ही नहीं, बल्कि कृषि उपकरण वितरकों और एग्रीटेक स्टार्टअप्स के लिए भी एक बड़ा अवसर है।
उत्तराखंड जैसे राज्य में उपकरणों की डीलरशिप, इंस्टॉलेशन सर्विस, मेंटेनेंस और कृषि परामर्श सेवाओं में निवेश कर युवा उद्यमी स्थानीय स्तर पर रोज़गार और आय के नए स्रोत बना सकते हैं।
माइक्रो-इरिगेशन तकनीक उत्तराखंड की पारंपरिक और संघर्षशील खेती को नवाचार की दिशा में ले जा सकती है। इससे न केवल पानी की बचत होती है, बल्कि खेती की लागत घटती है और मुनाफा बढ़ता है।
विजय प्रताप सिंह का यही संदेश था कि अब समय आ गया है कि पहाड़ के किसान परंपरागत तरीकों से आगे बढ़ें और नई तकनीकों को अपनाकर अपनी खेती को आत्मनिर्भर और मुनाफ़ेदार बनाएं।
प्रख्यात कृषि विशेषज्ञ
विजय प्रताप सिंह, पंतनगर विश्वविद्यालय से एमएससी एग्रीकल्चर धारक, उत्तराखंड के अग्रणी कृषि सलाहकारों में से एक हैं। उन्होंने राज्य भर में सैकड़ों किसानों को टिकाऊ कृषि तकनीकों के माध्यम से मार्गदर्शन दिया है।