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हिमालय में जल संकट: भारत के भविष्य के लिए बढ़ता खतरा

By नरेन्द्र सिंह बिष्ट | 20,December,2024 (Updated: 20,December,2024)
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पर्यावरण
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भारत
हिमालय में जल संकट: भारत के भविष्य के लिए बढ़ता खतरा
भारत एक कृषि प्रधान देश है, और यदि जल संकट गंभीर रूप लेता है, तो यह कृषि पर सीधा प्रभाव डालेगा।

फसलों की पैदावार घटेगी, खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ेंगी, और आम आदमी को इसका नुकसान झेलना पड़ेगा। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार ने अगस्त 2019 में "जल जीवन मिशन – हर घर जल" योजना शुरू की, जिसका उद्देश्य 2024 तक हर ग्रामीण घर में नल से जल उपलब्ध कराना है। जुलाई 2023 तक, 1,76,363 गांवों में से 65,826 गांवों को "हर घर जल" के रूप में प्रमाणित किया गया है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है – इन नलों में पानी आएगा कहां से?

पानी से समृद्ध पहाड़ों में ही जल संकट क्यों?

जो पहाड़ नदियों का उद्गम स्थल हैं, वही भयंकर जल संकट से जूझ रहे हैं। जल स्रोत कम हो रहे हैं, नदियां सूख रही हैं, और जहां पानी बचा है, वहां भी मशीनों के जरिये अत्यधिक दोहन किया जा रहा है। बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के कारण जल संकट और गहराता जा रहा है।

धारी (नैनीताल) के गाँव सेलालेख में जानकी देवी बताती हैं कि गाँव में पाइपलाइन का काम अभी भी अधूरा है, और पानी सिर्फ एक दिन छोड़कर, अधिकतम 15 मिनट के लिए आता है। इस पानी से 250 परिवारों की जरूरत पूरी करनी होती है। नजदीकी जल स्रोतों पर बाहरी लोगों की आवाजाही के कारण वे सूखने की कगार पर हैं, और गंदगी भी बढ़ रही है।

पहाड़ों में पानी की समस्या के कारण

जलवायु परिवर्तन - बारिश के अनियमित पैटर्न और बढ़ते तापमान के कारण जल स्रोत सूख रहे हैं।

चीड़ के जंगलों का विस्तार - पहाड़ों में 65% वन क्षेत्र चीड़ के पेड़ों से घिर चुका है, जो जल संरक्षण में मदद नहीं करता।

शहरीकरण और औद्योगिकीकरण - बढ़ते शहरों और फैक्ट्रियों के कारण जल प्रदूषण और दोहन बढ़ रहा है।

अत्यधिक भूजल दोहन - कृषि और घरेलू उपयोग के लिए भूजल का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है।

आशा की किरण: जल संरक्षण के प्रयास

उत्तराखंड में जल संकट से निपटने के लिए "वैल्यू नेटवर्क वेंचर्स (वी.एन.वी), बैंगलोर" और "आरोही संस्था, नैनीताल" ने नैनीताल, अल्मोड़ा, चंपावत, बागेश्वर और पिथौरागढ़ की 304 वन पंचायतों में 40 लाख पौधों (15 प्रजातियाँ) का रोपण किया है। यह कदम जल संरक्षण, चारे की उपलब्धता और पर्यावरण संरक्षण में मदद करेगा।

इसके अलावा, छोटे तालाब, चाल-खाल और जल संचयन संरचनाओं का निर्माण करके भूमिगत जलस्तर बढ़ाया जा सकता है, जिससे नदियों और गधेरों में पानी की उपलब्धता बनी रहेगी।

क्या कर सकते हैं हम?

यदि जल संकट की अनदेखी की गई, तो आने वाली पीढ़ियां इस समस्या से जूझती रहेंगी। हमें आज ही जागरूक होना होगा, ताकि भविष्य में जल संकट न बने।

  • जल के अनावश्यक उपयोग को रोकें और इसे व्यर्थ न बहने दें।

  • पहाड़ों में पारंपरिक जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने के प्रयास करें।

  • जल संरक्षण से जुड़ी योजनाओं में सक्रिय भागीदारी निभाएं।

  • चीड़ के जंगलों की जगह जल संग्रहण में सहायक पेड़ लगाए जाएं।

Conclusion

यदि जल संकट की अनदेखी की गई, तो आने वाली पीढ़ियां इस समस्या से जूझती रहेंगी। हमें आज ही जागरूक होना होगा, ताकि भविष्य में जल संकट न बने। "जल ही जीवन है – इसे बचाना हमारी जिम्मेदारी है!"

नरेन्द्र सिंह बिष्ट
नरेन्द्र सिंह बिष्ट

Agricultural Expert and Farmer

लेखक का उद्देश्य भारतीय कृषि और किसानों के जीवन से जुड़ी सच्ची और सरल बातें लोगों तक पहुँचाना है। यह लेखन गाँवों की चुनौतियों और मेहनत को सामने लाने की कोशिश करता है, ताकि लोगों को खेती-किसानी की असली स्थिति समझ में आ सके। लेखक चाहते हैं कि इनके माध्यम से किसानों की आवाज़ सुनी जाए और समाज में जागरूकता बढ़े।

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