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उत्तराखंड के पर्वतीय किसान खेती से विमुख क्यों हो रहे हैं?

By Narendra Singh Bisht | 16,December,2024 (Updated: 16,December,2024)
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उत्तराखंड के पर्वतीय किसान खेती से विमुख क्यों हो रहे हैं?

खेती से आजीविका चलाने वाला उत्तराखंड का पहाड़ अब खाली होता जा रहा है। पलायन, खेतों का वीरान होना और मंडियों की कमी, आखिर क्यों किसान अपनी पुश्तैनी जमीन से नाता तोड़ रहे हैं?

पलायन और सिमटती खेती

राज्य में 2011 की जनगणना के बाद से अब तक 734 गांवों की जनसंख्या पूरी तरह शून्य हो चुकी है। वहीं, 565 गांव ऐसे हैं जहां आबादी 50 प्रतिशत से भी कम रह गई है। रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और आधुनिक सुविधाओं की कमी के चलते लोग मैदानों की ओर पलायन कर रहे हैं।

मंडी और बाजार की दूरी सबसे बड़ी समस्या

पर्वतीय किसानों को सबसे बड़ी समस्या अपनी उपज के उचित दाम न मिलने की है। पहाड़ों में मंडियों का अभाव है, जिससे किसानों को मैदानी इलाकों की मंडियों तक अपनी फसल पहुँचानी पड़ती है। ढुलान की लागत इतनी अधिक होती है कि किसान को लाभ तो दूर, लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता है।

जंगली जानवरों का आतंक और मौसम की मार

किसानों की मेहनत को सबसे ज्यादा नुकसान जंगली जानवर पहुंचाते हैं। बार-बार फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले जानवरों के कारण किसान खेती करने से कतराने लगे हैं। इसके अलावा बदलते मौसम और अनियमित बारिश ने भी खेती को घाटे का सौदा बना दिया है।

कम होती कृषि भूमि और परती जमीन में बढ़ोत्तरी

राज्य गठन के समय 7.70 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि थी, जो अब घटकर 6.73 लाख हेक्टेयर रह गई है। वहीं परती भूमि 1.07 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 1.60 लाख हेक्टेयर हो गई है। पहाड़ी इलाकों में कृषि योग्य भूमि कम हो रही है और लोग अपनी ज़मीन बाहरी लोगों को बेचने पर मजबूर हो रहे हैं।

विशेषज्ञों की राय

जनपद नैनीताल के ग्राम मनाघेर से डॉ. नारायण सिंह बिष्ट बताते हैं कि युवा पीढ़ी अब खेती से दूरी बना रही है। क्योंकि खेती में मेहनत और समय ज्यादा लगता है, लेकिन बदले में उत्पादन और लाभ कम होता है। बटवारे के चलते जोत भी सिकुड़ रही है। उनका सुझाव है कि आधुनिक कृषि तकनीक और मिश्रित खेती को बढ़ावा दिया जाए ताकि किसी एक फसल के नुकसान से किसान पूरी तरह बर्बाद न हों।

वहीं, आरोही संस्था के अधिशासी निदेशक डॉ. पंकज तिवारी कहते हैं कि पहाड़ के लोग मेहनत से डरने लगे हैं। सरकारी योजनाओं में मुफ्त सुविधाएं मिलने से किसान आत्मनिर्भर नहीं रह पाए। वह मानते हैं कि पहाड़ों में औषधीय पौधों की खेती और लघु उद्योगों को बढ़ावा देकर रोजगार के नए अवसर पैदा किए जा सकते हैं।

आगे का रास्ता क्या हो सकता है?

  • आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग: उन्नत बीज, सिंचाई प्रणालियां, और कृषि उपकरण।

  • मिश्रित और जैविक खेती को बढ़ावा: जिससे किसान विविध फसलों से आय अर्जित कर सकें।

  • स्थानीय मंडियों की स्थापना: ताकि किसानों को अपनी उपज के लिए दूर नहीं जाना पड़े।

  • युवा किसानों को प्रशिक्षण और प्रोत्साहन: कृषि को लाभकारी व्यवसाय बनाने के लिए।

  • औषधीय और नकदी फसलों पर फोकस: जिनकी बाजार में मांग अधिक है।

Hallo Mandi का प्रयास

Hallo Mandi किसानों को सीधा बाजार से जोड़ने का मंच है। किसानों को अब अपनी उपज का सही मूल्य, खरीदार और मंडी की जानकारी अपने मोबाइल पर ही मिलेगी। हमारा उद्देश्य है कि उत्तराखंड का किसान अपनी मिट्टी से जुड़े और खेती फिर से उसकी आजीविका का मजबूत आधार बने।

Conclusion

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Narendra Singh Bisht
Narendra Singh Bisht

Agricultural Expert and Writer

लेखक का उद्देश्य भारतीय कृषि और किसानों के जीवन से जुड़ी सच्ची और सरल बातें लोगों तक पहुँचाना है। यह लेखन गाँवों की चुनौतियों और मेहनत को सामने लाने की कोशिश करता है, ताकि लोगों को खेती-किसानी की असली स्थिति समझ में आ सके। लेखक चाहते हैं कि इनके माध्यम से किसानों की आवाज़ सुनी जाए और समाज में जागरूकता बढ़े।

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